Saturday 27 October 2012

Govardhan and Annakut Festivals-2012


गोवर्धन एवं अन्नकूट पर्व-2012
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गोवर्धन पर्व प्रत्येक वर्ष दिपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है. वर्ष 2012 में यह् पर्व 14 नवम्बर, कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जायेगा. गोवर्धन पूजा के दिन ही अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है. दोनों पर्व एक दिन ही मनाये जाते है, और दोनों का अपना- अपना महत्व है. गो वर्धन पूजा विशेष रुप से श्री कृ्ष्ण की जन्म भूमि या भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे हुए स्थलों में विशेष रुप से मनाया जाता है.

इसमें मथुरा, काशी, गोकुल, वृ्न्दावन आदि में मनाया जाता है. इस दिन घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है. श्री कृ्ष्ण की जन्म स्थली बृ्ज भूमि में गोवर्धन पर्व को मानवाकार रुप में मनाया जाता है. यहां पर गोवर्धन पर्वत उठाये हुए, भगवान श्री कृ्ष्ण के साथ साथ उसके गाय, बछडे, गोपिया, ग्वाले आदि भी बनाये जाते है. और इन सबको मोर पंखों से सजाया जाता है.

और गोवर्धन देव से प्रार्थना कि जाती है कि पृ्थ्वी को धारण करने वाले हे भगवन आप गोकुल के रक्षक है, भगवान श्री कृ्ष्ण ने आपको अपनी भुजाओं में उठाया था, आप मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें. यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है. जिन क्षेत्रों में गाय होती है, उन क्षेत्रों में गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है.

गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है. गोबर से बने, श्री कृ्ष्ण पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है. गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते है.

मथुरा-वृंन्दावन में यह उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का नैवैद्ध चढाया जाता है.

गोवर्धन पूजा कथा
Story of Govardhan Puja

गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है. बात उस समय की है, जब भगवान श्री कृ्ष्ण अपनी गोपियों और ग्वालों के साथ गायं चराते थे. गायों को चराते हुए श्री कृ्ष्ण जब गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बडे उत्साह से नाच-गा रही थी. पूछने पर मालूम हुआ कि यह सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिये किया जा रहा है. देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर हमारे गांव में वर्षा करेगें. जिससे अन्न पैदा होगा. इस पर भगवान श्री कृ्ष्ण ने समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है.

ब्रज के लोगों ने श्री कृ्ष्ण की बात मानी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी. जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. इन्द्र गुस्से में आयें, और उन्होने ने मेघों को आज्ञा दीकी वे गोकुल में जाकर खूब बरसे, जिससे वहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो जायें.

अपने देव का आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें. ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गयें. ओर दौड कर श्री कृ्ष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा. जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गयें. ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा. यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ. और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगने लगें. सात दिन बाद श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा. तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है.

अन्नकूट पर्व
Annakut Festival

अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबन्धित है. इस दिन 56 प्रकार की सब्जियों को मिलाकर एक भोजन तैयार किया जाता है, जिसे 56 भोग की संज्ञा दी जाती है. यह पर्व विशेष रुप से प्रकृ्ति को उसकी कृ्पा के लिये धन्यवाद करने का दिन है. इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है. उसपर अन्नपूर्णा की कृ्पा सदैव बनी रहती है.

अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन है. इसमें पूरे परिवार, वंश व समाज के लोग एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पन करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है. काशी के लगभग सभी देवालयों में कार्तिक मास में अन्नकूट करने कि परम्परा है. काशी के विश्वनाथ मंदिर में लड्डूओं से बनाये गये शिवालय की भव्य झांकी के साथ विविध पकवान बनाये जाते है.
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DHARMMARG: 13, November. 2012 Deepavali Puja Muhurt

DHARMMARG: 13, November. 2012 Deepavali Puja Muhurt: दिपावली पूजन मुहूर्त : 13 नवम्बर, 2012  श्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल, ...

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सभा-संस्था समाचार


भूकैलाश धाम में गायत्री अश्वमेध यज्ञ 21 दिसम्बर से

कोलकाता(जगकल्याण)। विश्व कल्याण जन-कल्याण केन्द्र की ओर से भूकैलाश धाम, खिदिरपुर में 1008 कुंडीय गायत्री अश्वमे यज्ञ का आयोजन 21 से 25 दिसम्बर तक होगा। संस्था के चेयरमैन श्रवण कुमार अग्रवाल के अनुसार कार्यक्रम के पहले दिन 21 दिसम्बर को दिन के 11 बजे विराट कलश एवं शोभायात्रा निकाली जाएगी। 22 को प्रात: ध्वजारोहण, स्वागत समारोह, अश्वमेधिक देव पूजन, यज्ञानि प्रज्ज्वलन, सायंकाल प्रवचन, 23 को प्रात: यज्ञ, सायं प्रवन, 24 को प्रात: यज्ञ आहुति, शाम को प्रवचन, 25 को प्रात: यज्ञ पूर्णाहुति, आमंत्रित देवगणों की विदाई, अश्वमेधक प्रसाद वितरण होगा।

हावड़ा वेलफेयर ट्रस्ट व नरसिंह चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा वस्त्र वितरण

हावड़ा। शहर के दो व्सनाम धन्य सामाजिक संस्थान हावड़ा वेलफेयर ट्र्रस्ट व नरसिंह चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा पश्चिम मिदनापुर के झाड़ग्राम जिला पुलिस के अंतर्गत बेलपहाड़ी थाना के जंगल महल अंचल में दुर्गापूजा के उपलक्ष्य में 300 महिलाओें में साड़ियां एवं इतने ही बच्चों में पैंट व टी-शर्ट वितरित किए गए। इस निमित आयोजित वस्त्र वितरण शिविर का उद्‌घाअन करते हुए जिलापुलिस अधीक्षक श्रीमती भारती घोष ने कहा कि शहरों में अनेक सामाजिक संगठन हैं लेकिन सुदूर इलाकों में जहां अभाव ग्रस्त लोगों की भरमार है, वहां ऐसे संगठनों की भी कमी है। ऐसे में हावड़ा से लगभग 200 किलोमीटर  दूर आकर इन दोनों संगठनों ने दुर्गापूजा के ठीक पहले इन जरूरतमंदों को नए वस्त्र उपलब्ध कराकर सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। श्रीमती घोष ने कहा कि जहां जरूरत है, वहां जाकर अपनी सेवा प्रदान करना सामाजिक संस्थाओे का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए और इन दोनों संगठनों ने इस कर्तव्य का निर्वाह कर दूसरे संगठनों के प्रति अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस अवसर पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (मुख्यालय) श्री सुमित कुमार, हावड़ा वेलफेयर ट्रस्ट के सेवाकार्य प्रभरी श्री सत्यनारायण खेतान, नरसिंह चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट के प्रमुख श्री अनिल गोयल, भीमसेन जिंदल, आशीष बंसल, बिजय गोयल, रामसिंह यादव, अशोक गोयल, राजेश सिंह सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।

पूर्वांचल नागरिक समिति का दशहरा महोत्सव

कोलकाता। पूर्वांचल नागरिक समिति द्वारा दशहरा महोत्सव का आयोजन नलबन वोटिंग काम्प्लेक्स में 24 अक्टूबर को किया गया। समिति के अध्यक्ष सुरेन्द्र बजाज, संयोजक सांस्कृतिक विभाग प्रदीप अग्रवाल (संघई), सचिव उमेश केडिया के अनुसार शाम 6 से 8 बजे तक राजस्थानी लोकगीत, राम भक्ति गीतों की प्रस्तुति हुई। आतिशबाजी के साथ रावण दहण किया गया। राजस्थान के प्रसिद्ध कलाकार सांवरमल रंगा एवं उनकी पार्टी ने राजस्थानी लोकगीतों से समां बांध दिया । रावण के पुतले का दहन भी आतिशबाजी के साथ आकर्षक रहा। बड़ी संख्या में पहुंचे लोगों ने दशहरा महोत्सव का आनंद लिया।

श्री श्री धोली सती दादी प्रचार समिति का नवरात्र महोत्सव

कोलकाता। श्री श्री धोली सती प्रचार समिति, कोलकाता द्वारा नवरात्र महोत्सव का भव्य 9 दिवसीय आयोजन न्यू हरियाणा भवन में किया गया। एकम 16 अक्टूबर को सज्जन-जगदीश सराफ के सौजन्य से, दूज को प्रदीप सराफ, तीज को नंदकिशोर-विद्या देवी बिंदल, चौथ को अनिल-रोहित सराफ, पंचमी-षष्ठी को सुशील-अनिल सराफ, सप्तमी को बाल किशन सराफ, अष्टमी को विनोद-उमेश सराफ, तथा नवमी को मुरालीलाल-राजेश सराफ के सौजन्य से आयोजन हुआ। सभी दिन भक्तों की भारी भीड़ रही। समिति के पदाधिकारी तथा कार्यकर्त्तागण से मिलकर महोत्सव को सफल बनाया।

श्री राधा गोविन्द मंदिर में दुर्गापूजन

कोलकाता। श्री राधा गोविन्द मंदिर समिति द्वारा भवानीपुर स्थित राधाभक्ति के सन्त श्री कल्याणेश्वरजी महाराज के सान्निध्य मेें दुर्गापूजन (नवरात्र) एवं कात्यायनी योग माया दुर्गा ठाकुरानी पूजा महोत्सव विधि विधान एवं हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। 19 अक्टूबर से शुरू हुए कार्यक्रम में समिति द्वारा श्री राधागोविन्द के श्री विग्रह का श़ृंगार पूजन, कीर्तन, अर्चना, भजन, आरती और महाप्रसाद (भंडारे) का आयोजन प्रत्येक वर्ष की भांति किया गया। श्री दुर्गापुजन व कात्यायनी पुजन समिति में शामिल थे लक्ष्मीकांत तिवारी, दीपक मिश्रा, वैश्वानर चटर्जी, प्रयाग राज बंसल, बृजमोहन नांगलिया, नवल किशोर सोमानी, कृष्ण कुमार सिंघानिया, डॉ. बल्लभ नागोरी, सज्जन बंसल, चम्पालाल सरावगी, अजय मीमानी, राजीव गुप्ता, शंभुनाथ राय, प्रकाश किला, रामलाल अग्रवाल, गणेश कोठारी, परमानन्द अग्रवाल, वशिष्ट सिंह, श्यामसुन्दर पोद्दार (वर्मा), सुब्रत मित्रा, अंजन दासगुप्ता, श्रीमती अंजू देव, सुश्री सरिता सिंह एवं डा. सुश्री शिवानी साहा।

जरूरतमंदों में वस्त्र वितरण

कोलकाता। शारदोत्सव के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय मध्य देशीय वैश्य सभा के द्वारा नैहट्टी के मादराल ग्रामीण अंचल में भव्य वस्त्र वितरण का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्जवलन एवं झण्डोत्तोलन के साथ किया गया। प्रधान अतिथि के रूप में उपस्थित शिवनाथ साव सेवा मूलक इस कार्य के लिए कार्यकर्ताओं की सेवा के प्रति निष्ठा एवं चेष्टा को सराहनीय कदम बताया। हर संभव सहयोग की बात कही। स्थानीय विधायक अर्जुन सिंह एवं भाटपाड़ा नगरपालिका के उपचेयरमैन सोमनाथ तालुकदार एवं अन्य स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा त्यौहार के समय गरीबी के कारण जो लोग नये वस्त्र नहीं ले पाते हैं उनके लिए वस्त्र प्रदान करना वास्तविक मां की पूजा है।

श्री शिवशक्ति सेवा समिति 

कोलकाता। द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय पतंग उत्सव के मौके पर कोलकाता की मशहूर सामाजिक संस्था श्री शिव शक्तिसेवा समिति ने उत्सव में आये सैकड़ों बच्चों में मिठाइयां बांटी एवं पानी की व्यवस्था की। यह सूचना देते हुए समिति के सचिव दिनेश सिंघानिया ने बताया कि राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने विशेष रूप से समिति को पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी इस कार्य के लिए अधिकृत किया था। समिति की ओर से अध्यक्ष भानीराम सुरेका, विनोद सराफ, राजकुमार डाबड़ीवाल, अरुण सुरेका, रामावतार बागला, सज्जन कुमार अग्रवाल, आनंद अग्रवाल आदि ने मौके पर उपस्थित होकर पतंग उड़ाये, बच्चों का उत्साह बढ़ाया और मिठाइयां बांटी।

भण्डारा चौक में महाप्रसाद 

कोलकाता। श्री श्री विश्व शांति मां काली प्रचार सेवा समिति एवं सहयोगी संस्था परमार्थ के संयुक्त तत्वावधान में कलाकार स्ट्रीट एवं शोभाराम बैशाक स्ट्रीट (भण्डारा चौक) के संगम स्थल पर नागेश सिंह के नेतृत्व में प्रसाद वितरण का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य रूप से उपस्थित थे बड़ाबाजार जिला कांग्रेस के अध्यक्ष एवं पार्षद संतोष पाठक, समाजसेवी प्रकाश जाजोदिया, संजय मजेजी, गंगाधर शर्मा, जोड़ासांकू युवा कांग्रेस के महासचिव गोबिन्द सिंह, संस्था के सचिव विक्रम कठोर, भोला यादव आदि। कार्यक्रम को सफल बनाने में रुप नारायण देरासरी, मंगल जायसवाल, रामबाबू शुक्ला, गणेश सिंह, मनीष कोचर, सुरेश अग्रवाल का मुख्य रूप से योगदान रहा।

सेंट्रल कोलकाता यूथ स्टार क्लब

कोलकाता। मध्य कोलकाता के 48 नं. वार्ड बहूबाजार सोना पट्टी अवस्थित सेंट्रल कोलकाता यूथ स्टार क्लब की ओर से गरीबों, असहाय 100 लोगों के सहायतार्थ नये वस्त्र वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। महालया की संध्या पर होने वाले उक्त वस्त्र वितरण कार्यक्रम का उद्देश्य स्थानीय संवेदनशील क्लब कार्यकर्ताओं और सेवाप्रद लोगों द्वारा दुर्गापूजा पर गरीब लोगों के चेहरों में खुशियों के फूल उजागर करना है। क्लब प्रमुख भक्ति प्रसाद गुहा और सचिव रामप्रताप सिंह ने कहा कि क्लब कार्यकर्ताओं के सम्मिलित प्रयास से वे इस कार्यक्रम को पांच वर्षों से करते आ रहे हैं। इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर बहुबाजार स्कूल के प्रधानाचार्य, सोमनाथ मतिलाल आदि उपस्थित थे।

मैथिली काव्य संध्या

कोलकाता। मैथिली काव्य संध्या में युवा कवियों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। मिथिला विकास परिषद के द्वारा आयोजित काव्य संध्या की अध्यक्षता साहित्य अकादमी नई दिल्ली में मैथिली परामर्शदातृ समिति के पूर्व सदस्य अशोक झा ने किया। युवा कवियों में कौशल दास, अपराजिता झा, श्रीमती शैल झा, मो. शौकत अली, हरिवंश झा, नारायण ठाकुर आदि ने मिथिला एवं देश में फैले अराजकता, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर सारगर्भित कविता पाठ किया। अशोक झा ने "लहाश टुकुर टुकुर तकैत अछि' और "गांव आब गांव नहिं रहल' कविता प्रस्तुत किया। विनय कुमार प्रतिहस्त ने कार्यक्रम का संचालन किया। झा ने बताया कि युवाओं को प्रोत्साहित करने हेतु दिपावली के पश्चात बिजया एवं दियाबाती मिलन समारोह के अवसर पर कोलकाता में विभिन्न भाषाओं के कवियों को एक मंच पर लाकर सर्वभारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा।


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इस्कॉन मंदिर मायापुरधाम में दीपदान उत्सव

Radha Madhav Mandir, Mayapur, Nadia, Krishnanagar, West Bengal


मायापुरधाम (जगकल्याण)। इस्कॉन के प्रधान केन्द्र मायापुर चन्द्रोदय मंदिर श्री लक्ष्मी पूर्णिमा की रात सोमवार, 29 अक्टूबर से दीपदान उत्सव प्रारंभ हो रहा है। यह उत्सव बुधवार, 28 नवम्बर रास पूर्णिमा तक चलेगा। उत्सव में भाग लेने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। शाम 7 बजे के बाद दीपदान उत्सव प्रारंभ होता है जो 1 घंटा पश्चात रात्रि 8 बजे तक अनवरत चलता है। इस्कॉन के जनसंपर्क अधिकारी महाराज रसिक गौरांग दास ने बताया कि महीने भर चलने वाले इस उत्सव में जाति-धर्म-वर्ण से परे हर कोई दीपदान कर रहे हैं। यह उत्सव सिर्फ मायापुरधाम में ही नहीं बल्कि विश्व भर में स्थित 500 शाखा केन्द्रों में भी यह आयोजन चलता है। इसके साथ ही दामोदराष्टकम्‌ स्रोत पाठ होता है। अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाने वाला यह उत्सव सभी मनुष्यों के मन में प्रकाश लाये, प्रभु से यही प्रार्थना।


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Friday 26 October 2012

DHARMMARG: DIWALI HINDI SMS-SHUBHKAMNA SANDESH OR PHOTO

DHARMMARG: DIWALI HINDI SMS-SHUBHKAMNA SANDESH OR PHOTO: Hai Roshni ka ye Tyohar, Laye Har Chehre par Muskaan, Sukh aur Samridhi ki Bahaar, Samet lo Saari Khushiyan, Apno ka Saath aur Pyar...

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Wednesday 17 October 2012

सती माता कैसे बन गई शक्ति?



प्रजापति दक्ष की पुत्री सती को शैलपुत्री भी कहा जाता था और उसे आर्यों की रानी भी कहा जाता था। दक्ष का राज्य हिमालय के कश्मीर इलाके में था। यह देवी ऋषि कश्यप के साथ मिलकर असुरों का संहार करती थी।

मां सती ने एक दिन कैलाशवासी शिव के दर्शन किए और वह उनके प्रेम में पड़ गई। एक तरफ आर्य थे तो दूसरी तरफ अनार्य। लेकिन सती ने प्रजापति दक्ष की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव से विवाह कर लिया। दक्ष इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि सती ने अपनी मर्जी से एक ऐसे व्यक्ति से विवाह किया था जिसकी वेशभूषा और शक्ल दक्ष को कतई पसंद नहीं थी।

दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। लेकिन दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती के लिए अपने पति के विषय में अपमानजनक बातें सुनना हृदय विदारक और घोर अपमानजनक था। यह सब वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और इस अपमान की कुंठावश उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

सती को दर्द इस बात का भी था कि वह अपने पति के मना करने के बावजूद इस यज्ञ में चली आई थी और अपने दस शक्तिशाली (दस महाविद्या) रूप बताकर-डराकर पति शिव को इस बात के लिए विवश कर दिया था कि उन्हें सती को वहां जाने की आज्ञा देना पड़ी। पति के प्रति खुद के द्वारा किए गया ऐसा व्यवहार और पिता द्वारा पति का किया गया अपमान सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और यज्ञ कुंड में कूद गई। बस यहीं से सती के शक्ति बनने की कहानी शुरू होती है। इसके बाद मां के नौ जन्मों की कहानी शुरू होती है।

यह खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए। 

इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का जिक्र है, तो देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गई है। वर्तमान में भी 51 शक्तिपीठ ही पाए जाते हैं, लेकिन कुछ शक्तिपीठों का पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में होने के कारण उनका अस्तित्व खतरें में है।

सती ही है शक्ति : शक्ति से सृजन होता है और शक्ति से ही विध्वंस। वेद कहते हैं शक्ति से ही यह ब्रह्मांड चलायमान है। ...शरीर या मन में यदि शक्ति नहीं है तो शरीर और मन का क्या उपयोग। शक्ति के बल पर ही हम संसार में विद्यमान हैं। शक्ति ही ब्रह्मांड की ऊर्जा है। 

मां पार्वती को शक्ति भी कहते हैं। वेद, उपनिषद और गीता में शक्ति को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति कहने से अर्थ वह प्रकृति नहीं हो जाती। हर मां प्रकृति है। जहां भी सृजन की शक्ति है वहां प्रकृति ही मानी गई है। इसीलिए मां को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति में ही जन्म देने की शक्ति है।

अनादिकाल की परंपरा ने मां के रूप और उनके जीवन रहस्य को बहुत ही विरोधाभासिक बना दिया है। वेदों में ब्रह्मांड की शक्ति को चिद् या प्रकृति कहा गया है। गीता में इसे परा कहा गया है। इसी तरह प्रत्येक ग्रंथों में इस शक्ति को अलग-अलग नाम दिया गया है, लेकिन इसका शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती से कोई संबंध नहीं।

इस समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त है सिद्धियां और शक्तियां। स्वयं हमारे भीतर भी कई तरह की शक्तियां है। ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, मन:शक्ति और क्रियाशक्ति आदि। अनंत है शक्तियां। वेद में इसे चित्त शक्ति कहा गया है। जिससे ब्रह्मांड का जन्म होता है। यह शक्ति सभी के भीतर होती है।

शाक्त धर्म का उद्‍येश्य :
शक्ति का संचय करो। शक्ति की उपासना करो। शक्ति ही जीवन है। शक्ति ही धर्म है। शक्ति ही सत्य है। शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति ही हम सभी की आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। तभी तो नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं।
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मां दुर्गा की कहानी


या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है। इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि, लेकिन सबमें सुंदर नाम तो 'मां' ही है। 

माता की कथा :
आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को शक्ति कहा जाता है। यह शक्ति शब्द बिगड़कर 'सती' हो गया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी। लेकिन वह भस्म रमाने वाले योगी शिव के प्रेम में पड़ गई। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की ‍अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।

एक यज्ञ में जब दक्ष ने पार्वती (शक्ति) और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी पार्वती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। पार्वती को यह सब बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ‍क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां बाद में शक्तिपीठ निर्मित किए गए। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया। इसका यह मतलब नहीं कि अनेक माताएं हो गई।

माता पर्वती ने ही ‍शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था।

माता का रूप : 
मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्थचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं। शेर हमेशा माता के साथ रहता है।

माता की प्रार्थना : 
जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए है।

माता का तीर्थ : 
शिव का धाम कैलाश पर्वत है वहीं मानसरोवर के समीप माता का धाम है। जहां दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर मां साक्षात विराजमान है।

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Durgaji ki Aarti


जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥ 
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

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नवरात्रि पर क्या करें, क्या न करें...

दुर्गा माता के आराधना के नौ दिन

भारतीय शास्त्रों में नौ दिनों तक निर्वहन की जाने वाली परंपराओं का बड़ा महत्व बताया गया है। इन नौ दिनों में कई मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं, जिन्हें हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमें सिखाया है। उनका आज भी हम पालन कर रहे हैं। 


हर कोई चाहता है कि देवी की पूजा पूरी श्रद्धा-भक्ति से हो ताकि परिवार में सुख-शांति बनी रहे। आइए जानते हैं, माता के नौ दिनों में क्या करें, क्या न करें :- 

क्या करें :-

* जवारे रखना। 

* प्रतिदिन मंदिर जाना।

* देवी को जल अर्पित करना। 

* नंगे पैर रहना। 

* नौ दिनों तक व्रत रखना। 

* नौ दिनों तक देवी का विशेष श्रृंगार करना। 

* अष्टमी-नवमीं पर विशेष पूजा करना। 

* कन्या भोजन कराना। 

* माता की अखंड ज्योति जलाना।

क्या न करें :-

* दाढ़ी, नाखून व बाल काटना नौ दिन बंद रखें। 

* छौंक या बघार नहीं लगाएं। 

* लहसुन-प्याज का भोजन ना बनाएं।
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दस महाविद्या : माता पार्वती के दस रूप

कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है।

इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि। इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। यहां प्रस्तुत है माता के दस रूपों का वर्णन।
1. काली, 2. तारा, 3. षोडशी, (त्रिपुरसुंदरी), 4. भुवनेश्वरी, 5. छिन्नमस्ता, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10. कमला।
कहते हैं कि जब सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस निषेध पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपना प्रभाव दिखलाया, जिस कारण शिव को उन्हें जाने की आज्ञा देने पर मजबूर होना पड़ा। यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। इनकी उत्पत्ति में मतभेद भी हैं।
अत: माता पर्वती का ध्यान करना और उन्हीं की भक्ति पर कायम रहने वाले के लिए जीवन में कभी शोक और दुख नहीं सहना पड़ता। माता सिर्फ एक ही है, अनेक नहीं यह बात जो जानता है वहीं शिव की शक्ति के ओज मंडल में शामिल हो जाता है।

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नवरात्रि में सुबह-शाम यह मां वैष्णवी मंत्र बोलें

नवरात्रि में सुबह-शाम यह मां वैष्णवी मंत्र बोल पूरी कर लें हर मुराद

मां वैष्णवी, साक्षात त्रिगुणात्मक महाशक्ति यानी महाकाली, महासरस्वती व महालक्ष्मी स्वरूपा हैं। पौराणिक मान्यताओं में जगतजननी दुर्गा ही दुष्ट शक्तियों व प्रवृत्तियों के रूप में फैले कलह व दु:ख के नाश के लिए ही इस स्वरूप में प्रकट हुई और सत्ववृत्तियों यानी सत्य व धर्म की रक्षा की। त्रिगुण स्वरूपा होने से मां वैष्णवी की उपासना ज्ञान, शक्ति व ऐश्वर्य देने वाली मानी गई है।

यही वजह है कि मां वैष्णवी का दरबार हो या अन्य कोई स्थान या स्थिति माता के लिए श्रद्धा, स्नेह व आस्था से भक्ति तमाम मुसीबतों से छुटकारा व हर मन्नत को जल्द पूरा करने वाली मानी गई है। धार्मिक आस्था है कि माता को हृदय से पुकारने पर भक्त की झोली मनचाही मुरादों से भर जाती है।

शास्त्र कहते हैं कि भगवान के लिए प्रेम जब आत्मा से जुड़ता है तो साधना रूपी शक्ति में बदल जाता है। बस, मां वैष्णवी की भक्ति से भी मिली यही ताकत जिंदगी में सुख-संपन्नता लाने वाली मानी गई है। इसके लिये विशेष मंत्र का स्मरण खासतौर पर नवरात्रि में माता के दरबार, घर या किसी भी मुश्किल हालात में करें तो शुभ फल मिलते हैं। अगली तस्वीरों पर क्लिक कर जानिए माता के स्मरण का ऐसा ही मंत्र और उपासना का सरल उपाय -

नवरात्रि में सुबह-शाम वैष्णवी देवी दरबार या घर में ही मां की तस्वीर की, विशेष लाल पूजा सामग्रियां अर्पण कर पूजा करें। घर में पूजा में माता की तस्वीर लाल चौकी पर विराजित कर विशेष रूप से लाल चंदन, लाल फूल, लाल अक्षत, लाल चुनरी के साथ दूध, हलवा, चने का प्रसाद अर्पित करें व अगली तस्वीर के साथ बताए मंत्र से मां वैष्णवी का स्मरण करें। मंत्र स्मरण कर माता के सामने मनचाही मुराद प्रकट करें, दरबार या तस्वीर के सामने मत्था टेकें। धूप-दीप आरती कर बुरे कर्म व विचारों के लिए क्षमा मांगे व ऐसे कामों से दूर रहने का संकल्प लें।
  • शंङ्खचक्रगदापद्मधारिणीं दु:खदारिणीम्। वैष्णवीं गरुडारूढां भक्तानां भयहारिणीम्।। अनन्यशरणां ज्ञात्वा प्रपद्ये शरणं तव। त्वदेकशरणं मात: त्राहि मां शरणागताम्।।
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दुर्गासप्तशती के चमत्कारी होने की वजहें




जगतजननी दुर्गा आद्यशक्ति पुकारी जाती हैं। शास्त्रों के मुताबिक आद्यशक्ति जगत के मंगल के लिए कई रूपों में प्रकट हुईं। देवी शक्ति के मुख्य रूप से तीन रूप जगत प्रसिद्ध है - महादुर्गा, महालक्ष्मी और महासरस्वती। वहीं नवदुर्गा, दश महाविद्या के रूप में भी देवी के अद्भुत और चमत्कारिक स्वरूप पूजनीय है। 


देवी उपासना सांसारिक जीवन के सभी दु:ख व कष्टों का नाश कर अपार सुख देने वाली मानी गई है। इन सभी रूपों की उपासना शक्ति साधना के रूप में भी प्रसिद्ध है। इसके लिए अनेक धार्मिक विधान, देवी मंत्र, स्त्रोत व स्तुतियों का बहुत महत्व बताया गया है। 

इसी कड़ी में नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ के जरिए जगतजननी के कई शक्तिस्वरूपों की भक्ति बहुत मंगलकारी और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदान करने वाली मानी गई है। यही वजह है कि दुर्गासप्तशती और उसका हर मंत्र चमत्कारिक भी माना जाता है। इसके अलावा तस्वीरों पर क्लिक कर जानिए वे 4 खास वजहें भी, जिनसे दुर्गासप्तशती पाठ का चमत्कारी और मंगलमय प्रभाव होता है- 

  • दुर्गासप्तशती मार्कण्डेय पुराण का अंग है, जो वेदव्यास द्वारा रचित पवित्र पुराणों में एक है। श्रीव्यास भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं।
  • मार्कण्डेय पुराण में दुर्गासप्तशती के रूप में मार्कण्डेय मुनि द्वारा संपूर्ण जगत की रचना व मनुओं के बारे में बताते हुए जगतजननी देवी भगवती की शक्तियों की स्तुति की गई है।
  • इसमें देवी की शक्ति व महिमा उजागर करते सात सौ मंत्रों के शामिल होने से यह सप्तशती नाम से पुकारी जाती है। इसमें देवी की 360 शक्ति स्वरूपों की स्तुति है।
  • दुर्गासप्तशती के मंगलकारी होने के पीछे धार्मिक दर्शन है कि जगतपालक विष्णु द्वारा स्वयं भगवान वेद व्यास के रूप में अवतरित होकर शक्ति रहस्य उजागर किया गया है। दूसरा इसमें शामिल पद्य संस्कृत भाषा में रचे गए हैं। संस्कृत देववाणी कहलाती है। देव कृपा व प्रसन्नता के लिए ही तपोबली महान मुनि और ऋषियों द्वारा इस भाषा का उपयोग कर देव साधनाओं के लिए दुर्गासप्तशती के साथ अन्य देव स्तुतियों और स्त्रोतों की रचना की गई। इसलिए ऋषि-मुनियों की ये स्तुतियां देववाणी के साथ तप के प्रभाव से संकटनाश व अनिष्ट से रक्षा के लिए बहुत असरदार मानी गई है। यही कारण है कि श्री वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण व उसमें शामिल दुर्गासप्तशती भी देव शक्तियों और तप के शुभ प्रभाव से भक्त के लिये मंगलकारी तो होती ही है, साथ ही यह हर कामनासिद्धी का अचूक उपाय भी माना गया है।
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Wednesday 10 October 2012

Festival of Navratri

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hhThe festival of Navratri (nav = nine and ratri = nights) lasts for 9 days with three days each devoted to worship of Maa Durga, the Goddess of Valor, Ma Lakshmi, the Goddess of Wealth and Maa Saraswati, the Goddess of Knowledge. During the nine days of Navratri, feasting and fasting take precedence over all normal daily activities amongst the Hindus. Evenings give rise to the religious dances in order to worship Goddess Durga Maa.
The 9 nights festival of Navratri begins on the first day of Ashwina of the bright fortnight. Seeds are sown, sprouting is watched, the planets are consecrated, and on the 8th and 9th days, Goddess Durga, Vijayashtami and Mahanavami are worshipped. The Devi Mahatmya and other texts invoking the Goddess who vanquished demons are cited.
Significance of 9 Nights
Shri Mata Vaishno Devi
1st - 3rd day of Navratri
On the first day of the Navaratras, a small bed of mud is prepared in the puja room and barley seeds are sown on it. These initial days are dedicated to Durga Maa, the Goddess of power and energy.
4th - 6th day of Navratri
During these days, Lakshmi Maa, the Goddess of peace and prosperity is worshipped.
7th - 8th day of Navratri
These final days belong to Saraswati Maa who is worshipped to acquire the spiritual knowledge. This in turn will free us from all earthly bondage. But on the 8th day of this colourful festival, yagna (holy fire) is performed.
Mahanavami
The festival of Navratri culminates in Mahanavami. On this day Kanya Puja is performed. Nine young girls representing the nine forms of Goddess Durga are worshiped.
The holy festival of Navaratri is an amalgamation of various themes, with the common theme of the victory of good over evil. According to some legends, Vijayadashami or Dusshera is celebrated on the day Lord Ram kills Ravana. Demon king Mahishasura had Lord Brahma's boon that, he would be unconquerable by any male form. According to a Puranic legend, the mighty demon defeated the gods and their king, Indri. They then approached Brahma, Vishnu and Shiva, who decided to destroy the demon. So they all combined their energies, and gave rise to Shakti and appealed to Goddess Durga to come to their aid.
MataVaishnodevi, Mata Vaishnodevi, Mata Vaishno Devi,Equipped with lethal weapons and riding a ferocious lion, the Goddess in all her awesome majesty, destroyed the evil one without much ado. The 10th day, on which the goddess kills Mahishasura, is celebrated as Dusshera or Vijayadashami as the victory of good over evil. Dusshera (tenth day) is one of the significant Hindu festivals, celebrated with pomp and fervour all over the country.
On the tenth day, the Vijayadasmi day, colossal effigies of Ravana, his brother Kumbhkarna and son Meghnadh are placed in vast open spaces. Rama, accompanied by Sita and his brother Lakshmana, arrive and shoot arrows of fire at these effigies. The result is a deafening blast, enhanced by slogans of triumph. In burning the effigies the people are asked to burn the evil within them, and thus follow the path of virtue and honesty. On this day in the famous Ramleela grounds in Delhi, huge effigies of the ten-headed demon king Ravana, Meghanath, his son, and Kumbhakarna, his brother, stuffed with explosive materials are torched by an arrow to symbolize the ultimate triumph of good over evil.
NAVRATRAS IN JAMMU
Navratri Festival, Navratra Fast, Navratri Pooja 9 DaysThe Vaishno Devi shrine in Jammu witnesses a massive surge of devotees during the nine-day festival of Navratri.  On an average  about 40 thousand devotees arrive  in Katra, the base camp , for their onward pilgrimage to  Shri Mata Vaishno Devi Shrine. A pilgrimage to Mata Vaishno Devi shrine during the Navratri is considered most auspicious. Shri Mata Vaishno Devi Shrine Board (SMVDSB) like previous years has made several arrangements  to facilitate smooth pilgrimage  of the devotees during  Navratras this year.  The entire 13 kms track from Base Camp Katra  to  Bhawan Complex  has been cleaned and given a new look.  On the first day of Navratra  Chat Chandi Maha Yagya started at  Bhawan Complex  which will  continue  all the nine days and conclude on October 16 on the occasion of  Navmi with “Puran ahuti”. The entire  premises  of Mata Vaishno Devi Shrine has been illuminated  presenting a marvellous look.
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Tuesday 2 October 2012

श्री श्याम मंदिर घुसुड़ीधाम


श्री श्याम मंदिर घुसुड़ीधाम में गणेश
महोत्सव एवं राधाष्टमी की धूम
Shri Shayam Mandir Ghusuridham
हावड़ा। श्याम भक्तों की आस्था के पावन  धाम श्री श्याम मंदिर घुसुड़ीधाम में गणेश चतुर्थी पर गणेश महोत्सव का विराट आयोजन किया गया। भगवान गणेश की भव्य विराट प्रतिमा मंदिर में विराजमान की गई और मनोहारी श़ृंगार किया गया। मुख्य यजमान "श्याम रत्न' श्री संतोष-मंजू सिंघानिया ने आज विधिवत पूजन-अर्चन करवाया, जिसके पश्चात गणेश पूजन हेतु भक्तों का तांता लग गया और यह क्रम देर रात तक जारी रहा। इस अवसर पर आयोजित भजन संध्या का शुभारंभ लोकप्रिय भजन गायक श्री मनोज बालासिया ने किया और इसके बाद दलजीत सिंह, अनुराग बेदी, सूरज शर्मा, अंजूश्री, मनीष शर्मा ने भी सुमधुर भजनों का कार्यक्रम प्रस्तुत कर श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। मंदिर के प्रबंध न्यासी श्री बिनोद टिबड़ेवाल ने बताया कि गणेश महात्सव के साथ ही मंदिर में उत्सवों की श़ृंखला शुरू हो गई है इसी के अंतर्गत 23 सितंबर को राधाष्टमी महोत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। राधाअष्टमी महोत्सव के दौरा सामूहिक सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया गया। इसके पश्चात क्रमबद्ध तरीके से नव दिवसीय शारदीय नवरात्र महोत्सव, दीपोत्सव, अन्नकूट, श्याम जयंती महोत्सव और तीन दिवसीय श्री श्याम महाकुंभ मेला का भव्य विराट आयोजन मंदिर प्रांगण में इस वर्ष के अंत तक होगा। गणेश महोत्सव को सफल बनाने में सर्वश्री सुरेन्द्र अग्रवाल, किशन कासुका, वरुण अग्रवाल, देवेन्द्र कासुका सहित अन्य पदाधिकारियों का सक्रिय सहयोग रहा।

श्री मायापुर धाम में धूमधाम से 
मनाया गया राधाष्टमी उत्सव

Iskcon Mandir Mayapur, West Bengal

कोलकाता। इस्कॉन के मायापुर स्थित श्री चन्द्रोदय मंदिर में  राधाअष्टमी उत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस्कॉन, मायापुर धाम के महाप्रबंधक भक्त श्री निताई करुणा दास ने बताया कि इस अवसर पर राधा-कृष्ण का अनुपम श्रृंगार भजन-कीर्तन, राधा-रानी पर कार्यशाला, पूजा-पाठ का आयोजन किया गया। इस्कॉन, मायापुरधाम के जनसंपर्क अधिकारी महाराज रसिक गौरंग दास ने बताया कि इस अवसर पर बड़ी संख्या में देश-विदेश के भक्तों इस्कॉन प्रांगण को भक्ति रस में सराबोर कर दिया। इस दुर्लभ उत्सव का आनन्द लाभ लेने के लिए भोर आरती के बाद से ही भक्तों का आना शुरू हुआ जो उत्सव तक जारी रहा। ज्ञात रहे कि मंदिर में प्रतिवर्ष कृष्ण प्रिया राधारानी का प्राकट्‌य उत्सव राधाष्टमी परम्परागत रीति से आयोजित किया जाता है।

स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का आयोजन

कोलकाता। बाबा गंगाराम सेवा समिति (कोलकाता) के सौजन्य से स्थानीय मुक्ताराम बाबू स्ट्रीट स्थित सावित्री पाठशाला में स्कूली छात्राओं के लिए नि:शुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का आयोजन मारवाड़ी युवा मंच, उत्तर मध्य कलकत्ता के तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम के संयोजक विजय भूत ने बताया कि आज करीब 300 छात्राओं का चक्षु एवं रक्त परीक्षण, ऊँचाई, वजन, ब्लड सुगर, ब्लड-प्रेशर की जांच की गयी। समिति के प्रतिनिधि अरविन्द जालान, प्रचार सचिव सज्जन सुरेका, ओमप्रकाश चिरानिया, विश्वम्भर  घुवालेवाला, विजय माधोगढ़िया, सत्यनारायण सरावगी, सुशील मोदी, अनुराधा खेतान, मुकेश खेतान, बिमल चौधरी, विनोद सराफ, एगारोग्राम आरोग्य निकेतन की ओर से डॉक्टरों की टीम के साथ-साथ प्रभुदयाल साबू, राजेन्द्र बांठिया, विष्णु रवि चौमाल सक्रिय थे।

जुगलकिशोर जैथलिया का अभिनंदन समारोह संपन्न

कोलकाता। जुगलकिशोर जैथलिया का अभिनंदन किसी व्यक्ति विशेष का नहीं निष्ठा, कर्मशक्ति और वैचारिक दृढ़ता जैसी सद्‌वृत्तियों का सम्मान है। मूल्यों, नीतियों एवं आदर्शों के घोर पतन वाले इस युग में जहां अनियंत्रित काम और अनियंत्रित अर्थ ने अपना जाल फैला रखा है, जुगलजी जैसे मूल्यनिष्ठ, सिद्धांतप्रिय, कर्मठ कार्यकर्त्ता आश्वस्ति प्रदान करते हैं। वैचारिक एवं सैद्धांतिक स्तर पर बिना किसी चिंता के हर चुनौती को स्वीकार कर जैथलियाजी ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों को समृद्ध कर राष्ट्र की महत्वपूर्ण सेवा की है, ये उद्‌गार हैं, पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी के, जो स्थानीय ओसवाल भवन सभागार में कर्मयोगी जुगलकिशोरजी जैथलिया अमृत महोत्सव समारोह समिति की ओर से आयोजित अमृत महोत्सव अभिनंदन में बोल रहे थे।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रख्यात साहित्यकार डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने कहा कि इस आयोजन में विविध क्षेत्र के लोगों ने जिस उल्लास के साथ जैथलियाजी का अभिनंदन किया उससे प्रसन्नता हुई तथा यह धारणा पुष्ट हुई कि समाज के लिए स्वयं को समर्पित करने वाला सदैव सम्मानित होता है। अपने भावपूर्ण उद्‌गार में श्री जुगलकिशोर जैथलिया ने कहा कि आचार्य विष्णुकांत शास्त्री, कर्मयोगी भंवरलाल मल्लावत, समाजसेवी राधाकृष्ण नेवटिया तथा सुंदरसिंह भंडारी के सान्निध्य में मुझे जो सीख मिली उसने धन से विरत समाजसेवा का सार्थक मार्ग दिखाया।
इस अवसर पर श्री महावीर बजाज द्वारा संपादित, 632 पृष्ठों वाले जुगलजी के व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व पर केंद्रित ग्रंथ कर्मयोग का पथिक का लोकार्पण किया डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने। श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय के तत्वावधान में जुगलजी की 75 वर्ष पूर्ति पर गठित अभिनंदन समिति के इस आयोजन में मुख्य वक्ता प्रख्यात रंगकर्मी श्री विमल लाठ ने जुगलजी के साथ सामाजिक क्षेत्रों के अपने अनुभव सुनाए। वरिष्ठ आयकर सलाहकार श्री सज्जन कुमार तुलस्यान ने कहा कि जुगलजी ने विकट पारिवारिक संकटों के बावजूद देश-समाज एवं मॉं भारती की सेवा में स्वयं को समर्पित कर अनुपम आदर्श प्रस्तुत किया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व क्षेत्र के संघचालक श्री राणेन्द्रलाल बंद्योपाध्याय ने कहा कि संघ के स्वयंं सेवकों में जिन गुणों का समावेश होना चाहिए, जुगलजी ने अपने आचरण-व्यवहार से उसे प्रमाणित किया है। राजस्थान के पूर्व काबीना मंत्री श्री यूनुस खान ने कहा कि जैथलियाजी ने राजस्थान के छोटी खाटू गांव की माटी की सुगंध को कर्मक्षेत्र कोलकाता के माध्यम से सारे देश में फैलाकर माटी की महिमा प्रमाणित की है।
मंच पर सीटीसी के चेयरमैन श्री शांतिलाल जैन, उद्योगपति सज्जन भजनका, समाजसेवी श्री सीताराम शर्मा, वरिष्ठ समाजसेवी श्री महावीर नारसरिया, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष श्री तथागत राय, पारीक सभा के अध्यक्ष श्री मोहनलाल पारीक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन किया डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन किया श्री रुगलाल सुराणा जैन ने। अतिथियों का सम्मान किया सर्वश्री अरुण मल्लावत, श्रीमती विजया पारीक, दुर्गा व्यास, डॉ. अनुराग नोपानी, विधुशेखर शास्त्री, बंशीधर शर्मा, राजाराम बिहानी, गजानंद राठी, डॉ. तारा दूगड़, शलभ चतुर्वेदी, राधेश्याम सोनी एवं घनश्याम दास बेरीवाला ने। कार्यक्रम का प्रारंभ विप्र फाउंडेशन की सदस्याओं द्वारा भारत वंदना से हुआ तथा अभिनंदन गीत प्रस्तुत किया लोकप्रिय गायक श्री सत्यनारायण तिवाड़ी ने।

हावड़ा वेलफेयर ट्रस्ट का रक्तदान शिविर सम्पन्न

हावड़ा। हावड़ा वेलफेयर ट्रस्ट व एलॉयंस क्लब्स हिलिंग क्लिनिक की ओर से बनारस रोड, बिराडिंगी स्थित ट्रस्ट के सेवा भवन प्रांगण में स्वेच्छा रक्तदान शिविर व नि:शुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बतौर अतिथि राज्य के कृषि विपणन मंत्री श्री अरुप राय व शिवपुर के विधायक श्री जटू लाहिरी ने रक्तदाताओं का उत्साह-वर्द्धन किया और कहा कि चिकित्सा विज्ञान भले ही शिखर पर पहुंच गया हो लेकिन आज भी राक्त का कोई विकल्प नहीं खोज पाया है। रक्त की कमी रक्त से ही पूरी होती और यह रक्तदान से ही संभव है। इन दोनों अतिथियों ने रक्तदान शिविर के साथ ही दोनों संस्थाओं द्वारा संयुक्त रुप से नि:शुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर के आयोजन की भी भूरि-भूरि प्रशंसा की। हावड़ा वेलफेयर ट्रस्ट के सेवाकार्य प्रभारी श्री सत्यनारायण खेतान और एलॉयंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट-115 के मुख्य सचिव अविनाश मेहता ने बताया कि इस शिविर में 49 लोगों ने रक्तदान किया जबकि शताधिक लोगों ने स्वास्थ्य परीक्षण सहित अन्य परीक्षणों का लाभ उठाया। शिविर के सफल आयोजन में ट्रस्ट के सर्वश्री गिरीश माधोगढ़िया, अनिल गोयल, राजेश अग्रवाल, बिजय गोयल, अशोक गोयल, बिनोद लुहारीवाला व तुषार दास एवं एलॉयंस क्लब्स की ओर से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ए.के. भाटिया, मनुभाई दीवान, डी.के. खण्डेलवाल और बी.एन. बथवाल की सक्रिय भूमिका रही।

महाराजा अग्रसेन का राजवंश अग्रवाल समाज के लिए गौरव : श्री केड़िया

कोलकाता। महाराजा अग्रसेन दर्शन समिति की ओर से उद्योगपति व समाजसेवी संजय सुरेका, रविन्द्र चमड़िया, बनवारीलाल मित्तल का सम्मान समारोह समाजसेवी वासुदेव टिकमानी की अध्यक्षता में हिन्दुस्तान क्लब में सम्पन्न हुआ। सम्मानित अतिथियों को समिति के कार्यकर्ताओं ने तिलक, माल्यार्पण कर सम्मान पत्र, स्मृति चिन्ह, श्रीफल प्रदान कर सम्मानित किया। उद्‌घाटनकर्त्ता पूर्व राज्यपाल, जस्टिस श्यामल सेन ने पश्चिम बंगाल की संस्कृति से राजस्थान विशेषकर अग्रवाल मारवाड़ी समाज का अपनत्व का संबंध बताया। बागनान (हावड़ा) में तीन सौ बीघा जमीन पर निर्माणाधीन महाराजा अग्रसेन धाम के प्रेरणास्रोत, ट्रस्टी पुष्करलाल केड़िया ने कहा कि तकरीबन 5 हजार वर्षों का महाराजा अग्रसेन का राजवंश अग्रवाल समाज के लिए गौरव है। उन्होंने बताया कि महाराजा अग्रसेन धाम की सफलता के लिए समिति की ओर से भूटान, नेपाल, सिक्किम, बंगाल, बिहार एवं समीपवर्ती क्षेत्रों में अग्रलक्ष्मी ज्योति यात्रा की सफलता से उत्साहित समिति के प्रयास से कलाकार स्ट्रीट में महाराजा अग्रसेन की मूर्ति का अनावरण हुआ। समिति के कार्यकर्ताओं ने कलाकार स्ट्रीट का नामकरण महाराजा अग्रसेन सरणी करने के लिए कोलकाता नगर निगम एवं प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध किया है। उन्होंने अग्रवाल बन्धुओं द्वारा दिये जा रहे सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया। आचार्य श्रीकान्त शर्मा (बाल व्यास) ने अपने आशीर्वचन में कहा कि समय का सदुपयोग ही जीवन की सार्थकता है। उन्होंने अग्रवाल समाज में संगठन को मजबूत करने के लिए आपस में सम्पर्क बढ़ाने एवं भाईचारे की भावना कायम रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। भजन गायक सत्यनारायण तिवारी ने श्रोताओं को भाव-विभोर किया। संयोजक प्रह्लादराय गोयनका, सूर्यप्रकाश बागला, उपाध्यक्ष ओ.पी. भरतिया, सचिव संदीप गर्ग, सत्यनारायण देवरालिया, मुरारीलाल दीवान, श्यामसुन्दर क्याल, बैजनाथ चौधरी, विजय गुजरवासिया, निर्मल सराफ, किशनलाल ईशरवालिया, निरंजनलाल अग्रवाल, जगदीश गोयल, ममता जैन, दर्शना गर्ग एवं कार्यकर्ता सक्रिय रहे। महावीर रावत ने समारोह का संचालन किया।


महावीर सेवा सदन में कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण शिविर

कोलकाता। महावीर सेवासदन द्वारा सदन के प्रांगण में विकलांग सहायता एवं कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण शिविर समाजसेवी विजय सिंह भंडारी के सौजन्य से लगाया गया। आरंभ में महावीर सेवा सदन के अध्यक्ष जे एस मेहता ने अपने स्वागत वक्तव्य में श्री भंडारी परिवार के स्व. के एस भंडारी जी को याद करते हुए उन्हें भावभरी श्रद्धांजलि अपिर्त की एवं समस्त भंडारी परिवार के सदस्यों को साधूवाद देते हुए उनकी सेवा भावना की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस अवसर परपूर्व शेरिफ कोलकाता डॉ. एस के शर्मा, रोटरी क्लब कलकत्ता के अध्यक्ष अभिजीत कोले, बेंगलोर से पधारे नरेंद्र भंडारी के साथ-साथ मलेशिया से पधारे रोटरी क्लब ऑफ बंदर सुनबे- मलेशिया के अध्यक्ष डॉ. थिरुन्नावुकरासु राजू अपनी पूरी टीम के साथ उपस्थित थे। सभी महानुभावों का सदन के वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर में विकलांग भाई बहनों यद्वारा निर्मित पुष्प स्तवक से स्वागत किया गया। महावीर सेवा सदन द्वारा प्रदत्त निःशुल्क सेवा के कारण विकलांग के सक्षम बने लाभार्थियोंे का परिचय डॉ. बी के नेवटिया ने कराया। अजित सेठिया ने सहयोग दिया। उपाध्यक्ष मदन लाल नाहटा ने आभार जताया। संचालन रजत बैद ने किया।

स्नेह संघ द्वारा श्री गणेश चतुर्थी महोत्सव

कोलकाता। स्नेह संघ द्वारा आयोजित श्री गणेश महोत्सव राजा ब्रजन्दे नारायण स्ट्रीट में आयोजन किया गया। समारोह का उद्‌घाटन संजय बक्शी (पूर्व विधायक) एवं रमेश कुमार लाखोटिया (समाजसेवी) ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित थे। विजय ओझा (पार्षद), तपन राय (तृणमूल कांग्रेस नेता), हरी सोनी, नरेंद्र अग्रवाल, विष्णु शर्मा, विनय साहा, पवन शर्मा, मनीष सोनकर, अवधेश सिंह, देवन्द्र सिंह, वस्न मल्लिक, मनोज जैन कार्यक्रम को सफल बनाने में रवि तिवारी, पियुष गुप्ता, नरेंद्र सिंह, पवन सोनकर, श्याम सुंदर गुप्ता, विक्रम सिंह, दीपक माली, दिपक मल्लिक, प्रवीर साहा, विजय सिंह, सनी सोनकर, शेख इमरान, मिथुन सिंह, चिंटू मेहता, संजय मिश्रा, राजू सोनी, चंदन सोनकर सहित संस्था के अनेक सदस्यांें ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संचालन सुभाष शर्मा ने किया।

एनएस रोड में दुर्गापूजा का खूंटी पूजन

कोलकाता। आज गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर नेताजी सुभाष रोड सार्वजनिक दुर्गोत्सव समिति द्वारा दुर्गा मंडप का खूंटी पूजन श्री भगवताचार्य त्रिभुवनपुरी महाराज के कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ। इसमें संस्था के अध्यक्ष जय गोपाल मिश्रा, महासचिव दारा सिंह, समाजसेवी के एन खतरी, घनश्याम मिश्रा, संयोजक कालीनाथ सिंह, उमाशंकर प्रसाद, शैलेंद्र सिंह, कार्तिक सिंह, विनोद, विकास, सतीश, विनय दूबे, संस्था के सभी कार्यकर्ता एवं मुहल्ले के लोग उपस्थित थे।
सुरभिका के माणिकोत्सव का दूसरा दिन

राजस्थानी लोकनृत्य के रंग में रंगा

कोलकाता। धरती धोरांरी... राजस्थान की रंगत ही कुछ अलग होती है। यहां की परम्पराएं, लोक कलाएं, लोकनृत्य हर कुछ अलग अंदाज में होता है। सुरभिका के माणिकोत्सव का दूसरा दिन आज राजस्थानी लोक नृत्य भवई नृत्य के नाम रहा। अविष्का लोक कला संस्थान, नयी दिल्ली के कलाकारों ने अपनी शानदार कला का बेजोड़ प्रदर्शन कर कला मंदिर सभागार में उपस्थित दर्शकों को राजस्थान पहुंचा दिया। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार सुरेश व्यास तथा उनकी पत्नी वीणा व्यास के नेतृत्व में संस्थान के कलाकारों ने अपनी लोक नृत्य कला से रंग जमा दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान की वंदना- धरती धोरांरी.. से हुआ। फिर स्वागत नृत्य- चरी, युगल नृत्य- ढोलना रे ढोल बाजे..., फिर सुरेश व्यास ने गिलास के ऊपर 9 घड़े सिर पर रखकर, कांच के टुकड़ों और तलवार पर हैरत अंगेज भवई नृत्य प्रस्तुत कर सभी का दिल जीत लिया। इसके बाद चिरनी म्हारी लाडली..., खेती के समय का गीत और मालन गीत- गूथ ले बांगा की माण गेंद गजरा, युगल नृत्य- मोरिया..., सुरेश व्यास-सपना द्वारा-आछो बोलो रे ढलती रात में..., नेहा द्वारा विरह नृत्य- तारा छाई रात..., कंचन-प्रीतम द्वारा युगल नृत्य- घूंघटो उठाती चाले..., निक्की-सुरेश द्वारा- पल्लो लटके..., बीटी म्हारी सोना की होती..., कण-कण में गूंजे जय-जय राजस्थान (कंचन) तथा राधा-कृष्ण की प्रीति का नृत्य सफलता पूर्वक प्रस्तुत किया गया। सुरेश व्यास-वीणा व्यास के अलावा सपना, नेहा, कृष्णा, कंचन, निक्की, नीलम, मीनू, प्रीतम, सुरेश तथा बाल कलाकार आविष्का ने भी अपनी नृत्य कला की सराहनीय प्रस्तुति की। संचालन संजय दफ्तरी ने किया।

मैढ़ चेतना फाउण्डेशन का सेवा कार्य

कोलकाता। नि:स्वार्थ भाव से मानव सेवा, समाज सेवा एक सिक्के को दो पहलू हैं। स्वर्णकारों की प्रतिनिधि संस्था मैढ़ चेतना फाउण्डेशन, रिसड़ा स्थित नीलकण्ड अपार्टमेन्ट, बांगुड़ पार्क में नि:शुल्क होमियोपैथिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा रही है। प्रतिदिन डॉक्टरों की देखरेख में रोगियों की चिकित्सा के लिये संस्था के ट्रस्टी बाबुलाल सुल्तानिया, श्रीगोपाल कड़ेल, गोविन्द माधोपुरिया, गोवर्धन कड़ेल, प्रह्लाद कुल्थिया एवं संस्था के ट्रस्टी तथा कार्यकर्ता सक्रिय हैं।

नेत्र ऑपरेशन व परीक्षण

हुगली। लॉयन्स हेस्टिंग्स ग्रामीण सेवा केन्द्र, नन्दकुटी में ओमप्रकाश पोद्दार (पूर्व पार्षद) की अध्यक्षता में डॉ. रजनी सराफ ने 63 रोगियों का आँख ऑपरेशन एवं 390 रोगियों का नेत्र परीक्षण किया। पूर्व अध्यक्ष स्व. भगतराम अग्रवाल की स्मृति में आयोजित कैम्प का उद्‌घाटन विधायक बेचाराम मन्ना ने किया। लॉयन रामचन्द्र बड़ोपलिया (अध्यक्ष), पवनकुमार पोद्दार, बासुदेव खेतान, बिनोद बंका, पुष्पादेवी पोद्दार, चन्दा मेड़तिया, रिन्कू अग्रवाल सेवा कार्य में सक्रिय रहे। नये माइक्रोस्कोप का उद्‌घाटन प्रधान अतिथि सूरज बागला एवं स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का उद्‌घाटन शिवराम विश्वास (डीजी) ने किया। रश्मि बागला (जोन चेयरपर्सन), बाबुलाल बंका, डॉ. आर.के. शर्मा, डॉ. चौरसिया एवं यंग ब्वायज क्लब (कॉटन स्ट्रीट) की एम्बुलेन्स सेवारत थी।

श्री गणेश चतुर्थी महोत्सव भक्ति भाव से मनाया गया

कोलकाता। बड़ाबाजार स्थित श्री गणेश मंदिर (नवाब लेन) में परम्परागत गणेश चतुर्थी महोत्सव के अवसर पर भगवान श्री गणेशजी का अलौकिक श़ृंगार, प्रात: सामूहिक मंगला आरती, पंचामृत अभिषेक, छप्पन भोग, लड्डुओं का भोग एवं श्रद्धालु भक्तों द्वारा सवामनी प्रसाद महोत्सव का विशेष आकर्षण रहा। श्री गणेशजी के दर्शन के लिए भक्तों की अपार भीड़ रही। मंदिर के पुजारी श्री विनायक त्रिपाठी एवं जयप्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि कोलकाता महानगर ही नहीं, राज्य के विभिन्न शहरों से आए श्रद्धालु भक्तों ने भगवान के दर्शन किए एवं बड़ाबाजार स्थित इस ऐतिहासिक मंदिर में भक्ति-भाव से पूजा-अर्चना की।

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Monday 1 October 2012

पर्व त्यौहार


अक्टूबर सन् 2012

व्रत एवं पर्व
विक्रम संवत् 2069
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से कार्तिक कृष्ण द्वितीया तक
शक संवत् 1934
राष्ट्रीय आश्विन 9 से राष्ट्रीय कार्तिक 9 तक
हिजरी सन् 1433
जिल्काद 14 से जिलहिज्ज 14 तक
1 अक्टूबर- चातुर्मास के व्रती आश्विन में दूध न पियें, द्वितीया (दूज) का श्राद्ध, अशून्यशयन व्रत, फसली सन् 1420 शुरू, Succoth (Jewish)
2 अक्टूबर- तृतीया (तीज) का श्राद्ध, सायं ललिता देवी-यात्रा (काशी), महात्मा गांधी एवं शास्त्री जयंती
3 अक्टूबर- तृतीया (तीज) का श्राद्ध अपराह्न 1.59 बजे तक, भरणी-श्राद्ध, संकष्टी श्रीगणेशचतुर्थी व्रत
4 अक्टूबर- चतुर्थी (चौथ) का श्राद्ध, कृत्तिका-श्राद्ध
5 अक्टूबर- पंचमी का श्राद्ध, चंद्रषष्ठी व्रत, रोहिणी व्रत (जैन)
6 अक्टूबर- षष्ठी (छठ) का श्राद्ध, कपिलाषष्ठी
7 अक्टूबर- सप्तमी का श्राद्ध, भानु-सप्तमी पर्व (सूर्यग्रहणतुल्य), काली जयंती, साहिब सप्तमी (जम्मू-कश्मीर), ओठगन (मिथिलांचल)
8 अक्टूबर- अष्टमी का श्राद्ध, कालाष्टमी व्रत, महालक्ष्मी अष्टमी-महालक्ष्मी व्रत एवं लक्ष्मीकुण्ड-स्नान पूर्ण (काशी), गयामध्याष्टमी, जीवित्पुत्रिका (जीउतिया) व्रत, गजगौरी अष्टमी, वायुसेना दिवस
9 अक्टूबर- मातृनवमी-सौभाग्यवती स्त्रियों (सुहागिनों) का श्राद्ध, जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण, नवमी का श्राद्ध, श्रीगुरु रामदास जयंती (सिख), मा. कांशीराम की पुण्यतिथि, Simhath Torah (Jewish)
10 अक्टूबर- दशमी का श्राद्ध, राष्ट्रीय डाक दिवस
11 अक्टूबर- इंदिरा एकादशी व्रत, एकादशी (ग्यारस) का श्राद्ध, वैधृति महापात सायं 6.10 से रात्रि 11.41 बजे तक, जयप्रकाश नारायण जयंती
12 अक्टूबर- एकादशी व्रत (निम्बार्क वैष्णव), द्वादशी (बारस) का श्राद्ध, मघा-श्राद्ध, संन्यासियों-यति वैष्णवों का श्राद्ध, रेंटिया बारस, तिथिवासर प्रात: 8.14 बजे तक, डा. राममनोहर लोहिया स्मृति दिवस, विश्व दृष्टि दिवस
13 अक्टूबर- त्रयोदशी (तेरस) का श्राद्ध, शनि-प्रदोष व्रत (पुत्र-प्राप्ति हेतु प्रशस्त), मासिक शिवरात्रि व्रत, आचार्य श्रीराम शर्मा जयंती
14 अक्टूबर- दुर्मरण श्राद्ध-शस्त्र, विष, अग्नि, जल, दुर्घटना से अकाल मृत्यु में मरे व्यक्ति का श्राद्ध आज, चतुर्दशी (चौदस) का श्राद्ध धर्मसिन्धु के अनुसार अमावस्या में किया जाना शास्त्रोचित रहेगा, किन्तु मतान्तर से कुछ स्थानों पर चतुर्दशी-श्राद्ध, हिन्दी दिवस
15 अक्टूबर- स्नान-दान-श्राद्ध की आश्विनी अमावस्या, पितृविसर्जनी अमावस, सर्वपितृ-श्राद्ध, अज्ञात मरणतिथिवाले पूर्वजों का श्राद्ध आज, सोमवती अमावस्या-पर्वकाल सायं 5.32 बजे तक, मेला गयाजी (बिहार) एवं पिहोवा (हरियाणा), महालया समाप्त
16 अक्टूबर- शारदीय नवरात्र प्रारंभ, कलश (घट) स्थापना, नाती द्वारा नाना-नानी का श्राद्ध अपराह्न 2.17 बजे तक, महाराज अग्रसेन जयंती, तुला-संक्रान्ति शेषरात्रि 5.51 बजे, विश्व खाद्य दिवस
17 अक्टूबर- नवीन चंद्र-दर्शन, रेमन्त-पूजन (मिथिलांचल), तुला संक्रान्ति के स्नान-दान का पुण्यकाल सूर्योदय से प्रात: 9.51 बजे तक, कावेरी-स्नान
18 अक्टूबर- सिंदूर तृतीया, वरदविनायक चतुर्थी व्रत, माना चतुर्थी (बंगाल, उड़ीसा), रथोत्सव चतुर्थी, हज सफर शुरू (मुस.)
19 अक्टूबर- उपांग ललिता पंचमी व्रत
20 अक्टूबर- शारदीय दुर्गा पूजा प्रारम्भ, बिल्वाभिमंत्रण षष्ठी, गजगौरी व्रत, स्कन्दषष्ठी व्रत, तपषष्ठी (उड़ीसा), मूल नक्षत्र में सरस्वती (देवी) का आवाहन
21 अक्टूबर- शारदीय दुर्गा पूजा-पत्रिका प्रवेश (बंगाल),महासप्तमी व्रत-पूजा, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में सरस्वती (देवी) की पूजा, भानु-सप्तमी पर्व (सूर्यग्रहणतुल्य), नवपद ओली प्रारंभ (श्वेत.जैन), नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज का स्थापना दिवस
22 अक्टूबर- श्रीदुर्गा-महाअष्टमी व्रत-पूजा, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, अन्नपूर्णा माता दर्शन-पूजन एवं परिक्रमा (काशी), उत्तराषाढ़ नक्षत्र में सरस्वती (देवी)के लिये बलिदान, कुमारिका-पूजन, सूर्य सायन वृश्चिक राशि में शेषरात्रि 5.45 बजे, सौर हेमंत ऋतु प्रारंभ
23 अक्टूबर- श्रीदुर्गा-महानवमी व्रत-पूजा, त्रिशूलनी पूजा (मिथिलांचल), एकवीरा पूजा, श्रवण नक्षत्र में सरस्वती (देवी) का विसर्जन, शारदीय नवरात्र पूर्ण, महाव्यतिपात प्रात: 9.22 से दिन 3.12 बजे तक
24 अक्टूबर- विजयादशमी (दशहरा), शमी एवं अपराजिता-पूजा, नीलकण्ठ -दर्शन, सीमोल्लंघन, खत्री दिवस, आयुध (शस्त्र) पूजन, जयन्ती धारण (मिथिलांचल), सांईबाबा महासमाधि दिवस, (शिरडी), बौद्धावतार दशमी, माधवाचार्य जयंती, श्रीमहाकालेश्वर की सवारी (उज्जयिनी), विजय मुहूत्र्त में प्रस्थान, संयुक्त राष्ट्र दिवस
25 अक्टूबर- पापांकुशा एकादशी व्रत, देश के अधिकांश नगरों में रामलीला का भरत-मिलाप आज
26 अक्टूबर- पद्मनाभ द्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी, गणेशशंकर विद्यार्थी जयंती, बकरीद की संभावना
27 अक्टूबर- शनि-प्रदोष व्रत, बकरीद (मुस.)
28 अक्टूबर- वाराह चतुर्दशी, शाकम्भरी देवी मेला (देवबन)
29 अक्टूबर- शरद्पूर्णिमा व्रतोत्सव, कोजागरी पर्व, लक्ष्मी-पूजा (बंगाल), महारास पूर्णिमा (ब्रज), श्रीबांकेबिहारी द्वारा मोर-मुकुट व कटि-काछनी तथा वंशी धारण करना, लक्ष्मी एवं इंद्र पूजा, रात्रि-जागरण, महर्षि वाल्मीकि जयंती, पीर मत्स्येन्द्रनाथ उत्सव (उज्जयिनी), अग्र महाकुंभ (अग्रोहा), स्नान-दान-व्रत की आश्विनी पूर्णिमा, श्रीसत्यनारायण पूजा-कथा, कुमार पूर्णिमा (उड़ीसा), नवान्न पूर्णिमा, डाकोर जी का मेला (गुजरात), कार्तिक स्नान प्रारंभ, कार्तिक मास के लिए आकाशदीप-दान प्रारंभ, ब्रज-परिक्रमा प्रारंभ
30 अक्टूबर- पवित्र कार्तिक (दामोदर) मास प्रारंभ, चातुर्मास के व्रती कार्तिक में दाल न खायें, कार्तिक में मासपर्यन्त तुलसीदल से श्रीहरि की पूजा करें, तुलसी माता को पूरे मास दीप-दान करें।
31 अक्टूबर- अशून्य शयन व्रत, सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती, संकल्प दिवस, इंदिरा गांधी स्मृति दिवस, एकता दिवस

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नवरात्री-नवदुर्गा : नौ रूपों का पूजन


नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है। इन नौ दिनों में तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों (कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते हैं।
वासन्तिक नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं – पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता, छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।

प्रथम दुर्गा : श्री शैलपुत्री

नवरात्री प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा  विधि

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृत शेखराम।
वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम॥
श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण भगवती का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का है, जिनकी आराधना से प्राणी सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है।

द्वितीय दुर्गा : श्री ब्रह्मचारिणी

नवरात्री दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा  विधि

“दधना कर पद्याभ्यांक्षमाला कमण्डलम।
देवी प्रसीदमयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥“
श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है।
जो दोनो कर-कमलो मे अक्षमाला एवं कमंडल धारण करती है। वे सर्वश्रेष्ठ माँ भगवती ब्रह्मचारिणी मुझसे पर अति प्रसन्न हों। माँ ब्रह्मचारिणी सदैव अपने भक्तो पर कृपादृष्टि रखती है एवं सम्पूर्ण कष्ट दूर करके अभीष्ट कामनाओ की पूर्ति करती है।

तृतीय दुर्गा : श्री चंद्रघंटा

नवरात्री तीसरा दिन माता चंद्रघंटा की पूजा  विधि

“पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैयुता।
प्रसादं तनुते मद्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥“
श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
इनकी आराधना से मनुष्य के हृदय से अहंकार का नाश होता है तथा वह असीम शांति की प्राप्ति कर प्रसन्न होता है। माँ चन्द्रघण्टा मंगलदायनी है तथा भक्तों को निरोग रखकर उन्हें वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करती है। उनके घंटो मे अपूर्व शीतलता का वास है।

चतुर्थ दुर्गा : श्री कूष्मांडा

नवरात्री चौथे दिन माता कूष्माण्डा की पूजा  विधि

”सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥“
श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।
इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं।

पंचम दुर्गा : श्री स्कंदमाता

नवरात्री पंचमी दिन स्कंदमाता की पूजा  विधि

“सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥“
श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
इनकी आराधना से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। सिह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथो वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है।

षष्ठम दुर्गा : श्री कात्यायनी

 

नवरात्री पूजा - छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा  विधि

“चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥“
श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।
इनकी आराधना से भक्त का हर काम सरल एवं सुगम होता है। चन्द्रहास नामक तलवार के प्रभाव से जिनका हाथ चमक रहा है, श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है, ऐसी असुर संहारकारिणी देवी कात्यायनी कल्यान करें।

सप्तम दुर्गा : श्री कालरात्रि

नवरात्री पूजा - सप्तमी दिन माता कालरात्रि की पूजा  विधि

“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥“
श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए।
संसार में कालो का नाश करने वाली देवी ‘कालरात्री’ ही है। भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं।

अष्टम दुर्गा : श्री महागौरी

नवरात्री की अष्टमी दिन माता महागौरी की पूजा विधि

“श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥“
श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।
माँ महागौरी की आराधना से किसी प्रकार के रूप और मनोवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। उजले वस्त्र धारण किये हुए महादेव को आनंद देवे वाली शुद्धता मूर्ती देवी महागौरी मंगलदायिनी हों।

नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्री

नवरात्री पूजा की नवमी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा विधि

“सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥“
श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।
सिद्धिदात्री की कृपा से मनुष्य सभी प्रकार की सिद्धिया प्राप्त कर मोक्ष पाने मे सफल होता है। मार्कण्डेयपुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्वये आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी है। भगवती सिद्धिदात्री उपरोक्त संपूर्ण सिद्धियाँ अपने उपासको को प्रदान करती है। माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्र के अनुष्ठान का समापन हो जाता है।
इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है। दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाकई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं। 
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Manav Seva hi Ishwar Seva hai...

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